यमुना क्या एक नदी भर है? यह सवाल यदि खुद से भी पूछे तो जवाब ना में ही आएगा, क्यों? क्योंकि यह एक नदी नहीं है अपितु हमारी आस्था है, हम इसकी पूजा करते हैं, इसे जीवनदायीनी मानते हैं।
यमुना के बिना इलाहबाद के संगम की कल्पना अधूरी है। यह नदी उत्तर भारत की संस्कृति भी है, सभ्यता भी और अस्मिता भी। इस नदी ने खुद अपनी आँखों से इन तमाम संस्कृतियों को आपस में लड़ते, मिलते, बिछुड़ते और बढ़ते देखा है। तमाम बसावटों को बसते-उजड़ते देखने का सुख व दर्द, दोनों का एहसास आज भी यमुना की लहरों में जिंदा है।
यमुना हमारे धार्मिक ग्रंथों से लेकर हमारी मान्यताओं, लोककथाओं, गीतो कहानियों और किस्सो में हैं। यमुना के बिना भगवान कृष्णा की कल्पना नहीं की जा सकती। आगरा के तापमान की खुबसुरती यमुना से हैं। यह नदी भौतिक विकास की धारा बहाने वालों की योजना में भी एक ज़रूरत की तरह विद्यमान है। नदी एक भौतिकी भी है, भूगोल भी, जैविकी भी है, रोज़गार भी, जीवन भी है, आजीविका भी और संस्कृति व सभ्यता भी। किंतु विभिन्न महानगरों में प्रदूषण का भार सहते सहते आज यह नदी प्राकृतिक रूप से मर चुकी है। और इसी को लेकर जारी हैं बहुत सी मुहिम, परियोजनाएं और अभियान, जिनसे उम्मीद की जा रही है कि वह निष्प्राण, नीरविहीन यमुना को संरक्षित कर सकते हैं।
यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के अभियान की पहल करते हुए हाल ही में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी), उत्तर प्रदेश जल निगम और मैसर्स विश्वराज पर्यावरण के बीच हाइब्रिड वार्षिकी मोड के तहत आगरा के लिए सीवेज उपचार संयंत्रों के विकास के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
यह कहा जा रहा है कि 177.6 एमएलडी की क्षमता वाले इस सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को लेकर हुए अनुबंध की कीमत 582.84 करोड़ है। इस परियोजना के लागू होने के बाद आगरा शहर से यमुना में प्रवाहित होने वाला सीवेज बंद हो जाएगा, जिससे नदी पर से प्रदूषण भर को कम करने में बड़ी सहायता मिलेगी।
एनएमसीजी के द्वारा सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र के लिए जिस परियोजना को मंजूरी दी गई है, उसमें अवरोधन, डायवर्सन संरचनाओं का विकास, सेवेज पंपिंग स्टेशन का संचालन और बेहतर रखरखाव इत्यादि सहित अनेकों छोटी परियोजनाएं सम्मिलित हैं।
एनएमसीजी के महानिदेशक जी अशोक कुमार ने परियोजना के विषय में जानकारी देते हुए कहा है कि, "यह परियोजना किसी भी अनुपचारित अपशिष्ट जल को यमुना नदी में प्रवेश करने से रोकने के उद्देश्य को प्राप्त करने में एक और मील का पत्थर साबित होगी और यमुना गंगा नागी की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है, इसलिए इससे स्वच्छ गंगा मिशन को भी मजबूती मिलेगी।"
वहीं जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के अनुसार, गंगा और उसकी सहायक नदियों की सफाई के उद्देश्य से निर्मित हुई परियोजनाओं के लिए 30,000 करोड़ से अधिक के प्रस्ताव स्वीकृत किए गए हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि गंगा और उसकी सहायक नदियों को साफ करने के लिए बहुत सारे बुनियादी ढांचों का निर्माण भी किया जा रहा है।
बताते चलें कि इससे पहले दिल्ली में भी यमुना प्रदूषण के भार को कम करने के लिए मार्च 2022 में राज्य सरकार द्वारा दिल्ली की शाहबाद और सिंधु कॉलोनी में सीवर लाइन बिछाने की परियोजना को शुरू किया गया है, जिसके अंतर्गत दोनों कॉलोनियों में लगभग 90 किमी लंबे सीवर नेटवर्क को बिछाने की शुरुआत की गई है। वर्तमान में इन क्षेत्रों का सीवेज नालों में ही छोड़ा जा रहा है, जिससे यमुना प्रदूषण अत्याधिक बढ़ रहा है। गौरतलब है कि दिल्ली में यमुना को प्रदूषित करने में नजफगढ़, शहादरा ड्रेन, बारापुला ड्रेस न, दिल्ली गेट नाला और मोरी गेट का नाला की भूमिका काफी अधिक है।
इसी प्रदूषण के चलते जहरीली हो रही यमुना को लेकर जुलाई में दिल्ली सरकार ने एक अध्ययन भी निर्देशित किया था, जिसके तहत यमुना में झाग का कारण और यमुना एवं भूजल में माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की टीम के द्वारा स्टडी की गई थी। इस अध्ययन के परिणामस्वरूप जहरीले झाग के पीछे का प्रमुख कारण सीवेज में अत्याधिक फॉस्फेट की मात्रा को बताया गया। इस उच्च फॉस्फेट के पीछे डाइंग उद्योग, घरों और धोबी घाट पर प्रयोग होने वाला डिटर्जन्ट जिम्मेदार है।