कोई भी देश तभी मजबूत हो सकता है, जब उसकी जड़ें मजबूत हों यानि उसकी एकता और अखंडता बनी रहे। हमारा देश 200 वर्षों तक गुलाम रहा, जिसका सबसे बाद कारण हम टुकड़ों में बंटे हुए थे और हमारी रियासतों में आपसी एकत्व का लोप था, जिसका लाभ अंग्रेजी हुकूमत ने उठाया। किसी भी देश का वास्तविक विकास तभी संभव है जब वहां के निवासियों में आपसी एकता, सद्भावना और सौहार्द हो। "राष्ट्रीय एकता दिवस", यानि राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिवस हमें ऐसी ही एकता का पाठ पढ़ाता है।
31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाड़ियाद के एक किसान परिवार में जन्में सरदार वल्लभ भाई पटेल की शिक्षा का सबसे प्रमुख आधार स्वाध्याय रहा, उन्होंने अपने जीवन के संघर्षों से सीख लेते हुए लंदन से बैरिस्टर की शिक्षा पूरी की और भारत के अहमदाबाद में वकालत करना शुरू किया। महात्मा गांधी से प्रेरणा लेते हुए वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भागीदार बने। खेड़ा आंदोलन, बारडोली सत्याग्रह जैसे आंदोलनों में सशक्त भूमिका निभाते हुए उन्होंने देश भक्ति का परिचय दिया। महात्मा गांधी की इच्छानुसार उन्होंने अपने आप को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर रखा और देश में बिखरी पड़ी 565 रियासतों को एक साथ जोड़ने का मुश्किल कार्य किया।
देश के एकीकरण में सूत्रधार की भूमिका का निर्वहन करने के कारण ही महात्मा गांधी ने उन्हें लौह पुरुष की उपाधि दी। स्वयं गांधी जी का मानना था कि भारत को अखंड बनाने का कार्य सरदार वल्लभ भाई पटेल के अलावा दूसरा कोई नहीं कर सकता है। अपने अदम्य साहस, प्रखर व्यक्तित्व और राजनीतिज्ञ कौशल के चलते उन्होंने बिखरे पड़े भारत को एक धागे में पिरोया।
भारत जो विश्व के सबसे बड़े देशों में शामिल है और दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला देश हैं, यहां 1600 से अधिक भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं। साथ ही विभिन्न धर्मों जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी, बौद्ध, जैन आदि सभी यहां सदियों से मिलजुल कर रहते आए हैं और हमारे विभिन्न राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में पसरी सांस्कृतिक, पारंपरिक, सामाजिक विविधता के बाद भी हमारी भारतीयता हमें एक करती है। राष्ट्रीय एकता दिवस जिसकी शुरुआत वर्ष 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा की गई, हमें इसी आपसी एकता को बनाये रखने के लिए प्रेरित करता है।