हिंदू कुश हिमालय पर्वतमाला के क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर, जो करोड़ों वर्षों से जीवन सभ्यताओं को सींच रहे हैं, उन्हें लेकर इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) की ओर से बहुत बड़ा शोध किया गया है। जिसके आधार पर स्पष्ट किया गया है कि यदि भविष्य में जलवायु परिवर्तन इसी प्रकार बना रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब धीरे धीरे यहां मौजूद ग्लेशियर पूरी तरह से पिघल जाएंगे। जिससे इन पर निर्भर लगभग 2 अरब लोगों के लिए जल का महासंकट उत्पन्न हो जाएगा।
तेजी से कम हो रहे हैं हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियर -
हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र को विश्व के तीसरे ध्रुव के रूप में जाना जाता है और यह पूरा क्षेत्र भारत सहित अफगानिस्तान, पाकिस्तान, किर्गिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, तजाकिस्तान, मंगोलिया, उज्बेकिस्तान और म्यांमार तक फैला हुआ है। यदि वैश्विक रूप से देखें तो उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के पश्चात हिंदू कुश हिमालय के पास बर्फ का सर्वाधिक भंडार है, जिसके चलते यह दुनिया की एक तिहाई आबादी की जीवनरेखा माने जाते हैं।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) द्वारा किया गया अध्ययन दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन के चलते हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र वर्ष 2060 तक अपने वर्तमान ग्लेशियर का आधे से अधिक हिस्सा खो देगा, पहले वैज्ञानिकों ने 2070 तक के लिए यह अनुमान लगाया था। जिस प्रकार वैश्विक तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, उससे बड़े ग्लेशियर छोटे छोटे टुकड़ों में टूट रहे हैं।
गंगोत्री ग्लेशियर को लेकर भी हो चुकी है स्टडी -
उल्लेखनीय है कि इससे पहले देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के साइंटिस्ट डॉ. राकेश भाम्बरी और उनकी टीम के द्वारा भी गंगोत्री ग्लेशियर को लेकर एक अध्ययन किया गया था, जिसकी स्टडी भी बताती है कि वर्ष 1935 से लेकर 2022 तक गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने वाला हिस्सा लगभग पौने दो किलोमीटर तक पिघल चुका है। डॉ. राकेश भाम्बरी ने जानकारी दी थी कि गंगोत्री ग्लेशियर 1935-1996 तक जहां प्रति वर्ष 20 मीटर तक पिघलता था, उसकी रफ्तार अब बढ़कर 38 मीटर प्रतिवर्ष हो गई है।
यही हालात समस्त हिंदू कुश हिमालय के लिए बने हुए हैं, जो 2100 आने तक 80 फीसदी तक समाप्त हो जाएगा, जिसके परिणाम बेहद गंभीर होंगे। वहीं काराकोरम रेंज में भी 2010-19 तक किए गए अध्ययन के अनुसार 0.09 प्रतिवर्ष की औसत गिरावट ग्लेशियर के द्रव्यमान में आँकी गई है। साथ ही एवरेस्ट, के2, पश्चिमी कुनलून इत्यादि जैसी बड़ी पर्वतशृंखला भी इससे अछूती नहीं हैं और यह सभी भविष्य के एक बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन और ब्लैक कार्बन है ग्लेशियर पिघलाव का कारण -
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध के आधार पर कहा जा सकता है कि दो तरह के प्रदूषण के कारण इस समय हिमालय प्रभावित है। जिनमें बायोमास प्रदूषण, यानि कार्बन डाईआक्साइड और एलीमेंट प्रदूषण यानि तत्व आधारित प्रदूषण प्रमुख हैं। ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले जलवायु परिवर्तन से इस प्रकार से प्रदूषणों को गति मिलती है और इन दोनों से ही ब्लैक कार्बन का निर्माण होता है, जो ग्लेशियर के जीवन के लिए खतरा बनते हैं। मुख्य रूप से हिमालय पर जमा हो रही ब्लैक कार्बन और लगातार हो रही तापमान वृद्धि वर्तमान में ग्लेशियर्स के तेजी से पिघलने का कारण बन रहे हैं।
तीन वर्ष पूर्व साइंस एडवासेंज में प्रकाशित एक स्टडी में भी कहा गया था कि भारत समेत पूरे हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते तापमान के कारण हर साल करीब औसतन 0.25 मीटर ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जबकि, वर्ष 2000 के बाद से हर साल आधा मीटर ग्लेशियर पिघल रहे हैं। वर्ष 1975 से 2000 तक जितनी बर्फ पिघली थी, उसकी दोगुनी बर्फ वर्ष 2000 से अब तक पिघल चुकी है। इस अध्ययन में, भारत, चीन, नेपाल और भूटान के हिमालय क्षेत्र के 40 वर्षों के उपग्रह चित्रों का विश्लेषण किया गया था। शोधकर्ताओं ने इसके लिए करीब 650 ग्लेशियरों के उपग्रह चित्रों की समीक्षा की। ये ग्लेशियर हिमालय के क्षेत्र में पश्चिम से पूर्व की ओर 2000 किलोमीटर के दायरे में फैले हुए हैं।
बूंद बूंद पानी से तरस सकते हैं लोग -
रिपोर्ट के अनुसार यदि इसी प्रकार ग्लेशियर में विखंडन और पिघलने की गति बढ़ती रही तो आने वाले समय में हिंदू कुश हिमालय के अपग्राही क्षेत्र में आने वाले देशों के तकरीबन 2 अरब लोग बूंद बूंद पानी के लिए तरस जाएंगे। इस ग्लेशियर में मौजूद हिमपात और बर्फ के भंडारों से ही विश्व के एक तिहाई लोगों को पानी मिलता है। हिमालय से ही भारत में गंगा, सिंधु, यमुना इत्यादि नदियों को जल प्रवाह मिलता है, जिस पर वृहद जनजीवन की निर्भरता है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो हिंदू कुश हिमालयन रेंज से 12 नदियों को पानी मिलता है, जिससे 16 देशों को ताजे पानी की जलापूर्ति होती है। इनमें पर्वतीय क्षेत्रों में रह रहे लगभग 25 करोड़ और डाउन्स्ट्रीम में गुजर बसर कर रहे तकरीबन डेढ़ अरब लोग शामिल हैं। इसके कम होते जाने से पानी की भारी किल्लत होगी। लोगों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ सकता है। इसी समूह ने 2019 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें पाया गया था कि जहां औसत ग्लोबल वार्मिंग पूर्व-औद्योगिक तापमान से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर तक सीमित थी, उस क्षेत्र में भी अपने ग्लेशियरों का कम से कम एक तिहाई हिस्सा खो देगा।
हिंदू कुश हिमालय की सुरक्षा के लिए उत्सर्जन में कटौती पर अभी से देना होगा ध्यान -
आईसीआईएमओडी के उप महानिदेशक इजाबेला कोज़ील ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियर पृथ्वी प्रणाली का एक प्रमुख घटक हैं। एशिया में दो अरब लोग उस पानी पर निर्भर हैं जो यहां के ग्लेशियरों और बर्फ से आता है, इस क्रायोस्फीयर को खोने के परिणाम इतने व्यापक हैं कि सोचा भी नहीं जा सकता। हमें आपदा को रोकने के लिए अब सरकारी स्तर पर कार्यवाही करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को बचाने के लिए अभी भी समय है, लेकिन केवल तभी जब तेजी से कार्बन उत्सर्जन में कटौती की जाए और ग्लोबल तापमान को नियंत्रण में रखने के उपायों की ओर संयुक्त रूप से रुख किया जा सके।