बिहार में 1973 में अकाल जैसी परिस्थिति पैदा हो गयी थी। विधानसभा में इस पर बहस हुई जिसमें पूर्व मंत्री कपिल देव सिंह के भाषण से बहस की शुरुआत हुई।
कपिलदेव सिंह ने सरकार से पूछा कि,
"आपने गत 25-26 साल में कृषि पर 18 करोड़ रुपया खर्च किया, उससे आपको क्या फायदा हुआ? उसका क्या आउटपुट निकला?...आपकी सरकार ने यह भी ऐलान किया था कि हम 6 लाख टन गहूँ इस साल लेवी में वसूल करेंगे और सरकारी खजाने में जमा करेंगें, आपका वह बयान कितना गलत था? आपके आँकड़े कितने गलत थे, आपके वायदे कितने गलत हैं, आपका कदम कितना गलत हैं? सचिवालय से आँकड़े लेकर आपके मुख्यमंत्री पढ़ देते हैं और जब दिल्ली सरकार आपसे पूछती है तो आप कहते हैं कि सचिवालय से जो आँकड़ा मिला वही दिया है। मैं आप से पूछता हूँ कि कि यदि सचिवालय के कर्मचारी आपको लिख कर दें कि आपको कांके (कांके बिहार के रांची जिले में है और वहाँ एक प्रसिद्ध पागलखाना है-) ले जाना है तो आप उस पर दस्तखत कर देंगें? जब आप अपने सचिवालय के आँकड़ों पर दस्तखत कर दिल्ली भेजते हैं तो उसकी जिम्मेवारी आप पर है न?
इन्होनें मुंगेर जिले की चर्चा की और इनको जमुई सब-डिवीजन तो याद आ गया लेकिन मुंगेर के और सब-डिवीजन और प्रखंड जो बगल के लखीसराय, शेखपुरा, अरियरी आदि हैं वहाँ सुखाड़ नजर नहीं आया? वहाँ उनको हरियाली ही नजर आयी? इन्होनें (सूखे से निपटने के लिये) दो लाख रुपया दिया। तो एक ब्लॉक में 25 हजार और एक पंचायत में एक हजार रुपया पड़ा। मैं पूछता हूँ कि एक हजार में कितना हार्ड मैनुअल का काम होगा?
आप कहते हैं कि अमुक जगह में, अमुक क्षेत्र में इतना पम्पिंग सेट में पॉवर लगाया। लेकिन धरती पर जाकर देखिये तो पता चलेगा कि सिर्फ 15 में दिया है। अगर इनसे कहिये कि गंगा आदि नदियों के किनारे पमपिंग सेट लगा कर पानी धरती को दीजिए तो कहते हैं कि बड़ा कठिन काम है और इनके सेंट्रल मिनिस्टर कहते हैं कि गंगा नदी को कावेरी से मिला देंगें।
सरकार का कहना है कि रोहतास जिले में गेहूं भेजने का आदेश दे दिया दिया गया है। जब मैंने पूछा कि किसको आदेश दिया है तब इन्होनें कहा कि पटना के कमिश्नर को। देखा जाए, कमिश्नर कलक्टर को आदेश देंगें, कलक्टर एस.डी.ओ. को आदेश देंगें, एस.डी.ओ. बी.डी.ओ. को आदेश देंगें और बी.डी.ओ दुकानदार को। लेकिन इसमें कितना समय लगेगा। भूखों मरने वाले लोग कब तक इनका इंतजार करेंगें? जहाँ के बारे में इनको सूचना मिले तो तुरंत कलक्टर को फोन करके कहें कि 24 घंटे के भीतर वहाँ गल्ला पहुँचवाइये, अगर वहाँ राशन की दुकान में राशन न हो तो।
बिहार का चावल बांग्लादेश जाए और हम भूखों मर रहे हैं। 100 रुपये मन खरीद कर खा रहे हैं। इनसे पूछने पर पता लगा कि 49,224 टन गेहूं की प्राप्ति हुई है, लेकिन फखरुद्दीन अली अहमद ने लोकसभा में कहा है कि 41 हजार टन गेहूं बिहार में मिला है। ये कहते हैं 49,224 टन और वे कहते हैं 41 हजार टन। लेकिन दोनों में 8 हजार टन का फर्क है। यह किसके घर चला गया? चूहा तो इसको नहीं खा गया?... आज जनता भूख से छटपटा रही है, उसकी गम्भीरता को आप समझिये और सही स्थिति का मूल्यांकन कर आप ठीक ढंग से उसे दूर करने का प्रयास कीजिये।"