"कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे..!!"
देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले शहीदों में अशफाक़ उल्ला खान का नाम बेहद गर्व से लिया जाता है। एक ऐसा युवा क्रांतिकारी जिसने काकोरी कांड में अहम भूमिका निभाई और अंग्रेजी सरकार को नाकों चने चबवा दिए थे। केवल 26 वर्ष की आयु में मातृभूमि के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे देने वाले इस वीर शहीद का जन्म 22 अक्टूबर 1900 में उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर जिले के शहीदगढ़ में हुआ था। उनके पिता पुलिस विभाग में कार्यरत थे और अशफाक़ चार भाइयों में सबसे छोटे थे। उनका परिवार सरकारी नौकरी से जुड़ा था लेकिन शहीद अशफाक़ के मन में अपने वतन के लिए अद्भुत प्रेम था।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दू-मुस्लिम एकत्व का बेजोड़ उदाहरण अशफाक़ उल्ला खान एक क्रांतिकारी होने के साथ साथ शायरी भी किया करते थे, देशप्रेम से लबरेज उनकी कलम युवाओं में जोश और जुनून भरने का जज़्बा रखती है। उन्होंने काकोरी कांड में अहम भूमिका निभाते हुए सरकारी खजाना लूट लिया था, जिसके बाद ब्रिटिश शासन ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाकर उन्हें 19 दिसम्बर, 1927 को फैजाबाद जेल में फांसी पर लटका दिया था। उनकी स्मृति में वहां आज अमर शहीद अशफाक़ उल्ला खान द्वार भी बना हुआ है।
जंग-ए-आजादी के इस महानायक से वास्तव में आज के युवाओं को बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है, आज जहां अपने ही देश में अपने ही देशवासी धर्म-संप्रदाय के नाम पर एक दूसरे का गला काटने को तैयार हैं और सरकारें इसका लाभ वोट बैंक के लिए ले रही हैं। वहीं अशफाक़ उल्ला खान भारत माता के एक ऐसे सच्चे सिपाही थे, जिन्हें गिरफ़्तारी के बाद अंग्रेजी सरकार ने अन्य क्रांतिकारियों के खिलाफ सरकारी गवाह बनाने की हर कोशिश की, यहां तक कि उन्हें कहा गया कि देश की आजादी के बाद भी हिंदुओं का राज होगा और मुस्लिमों को कुछ नहीं मिलेगा, तो भी वीर अशफाक़ ने एक ही बात कही कि,
"अंग्रेजी हुकूमत हिन्दू−मुसलमानों में फूट डालकर आजादी की लड़ाई को नहीं दबा सकती। हिन्दुस्तान में क्रांति की ज्वाला भड़क चुकी है, जो अब अंग्रेजी साम्राज्य को जलाकर राख कर देगी। अपने दोस्तों के खिलाफ मैं सरकारी गवाह कभी नहीं बनूंगा।"