भारत में नदियों का धार्मिक महत्त्व किसी से छिपा नहीं है, युगों से नदियों किनारे लगने वाले पौराणिक मेले, स्थापित मंदिर, मठ, आश्रम, तपस्थली आदि को विशेष दर्जा मिला हुआ है. इसका साक्षात उदाहरण प्रयागराज, हरिद्वार, गंगा सागर जैसे सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं, जहां विभिन्न धार्मिक अवसरों पर देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. लेकिन इटावा जिला मुख्यालय से 70 किमी की दूरी पर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर चंबल के बीहड़ों में स्थित पांच नदियों के पवित्र संगम यानि पचनद इस धार्मिक और पर्यटन महत्त्व से विहीन रहा है. आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि देश में एक ओर जहां दो नदियों एवं तीन नदियों (त्रिवेणी) संगम को इतनी अधिक मान्यता मिली हुयी है, वहीं अपने आप में अनूठा पचनद कैसे उपेक्षा का शिकार बना रह सकता है.
हालांकि पचनद क्षेत्र का कायाकल्प होने की सुगबुगाहट वर्ष 1986 से ही शुरू हो गयी थी लेकिन वर्ष 2018 में योगी सरकार से हरी झंडी मिलने के बाद अब उम्मीद जताई जा रही है कि पचनद बांध प्रोजेक्ट को तेजी मिलने से न केवल उपेक्षित पड़े पचनद क्षेत्र को प्रसिद्धि मिलेगी अपितु यहां पर्यटन विकास की सीमाओं को भी विस्तार मिलेगा. आइये एक नजर डालते हैं पचनद क्षेत्र के अनूठे इतिहास और इससे जुडें महत्वपूर्ण तथ्यों पर...
1. पचनद का भौगौलिक चित्र
उत्तर प्रदेश के इटावा जिला मुख्यालय से 70 किमी की दूरी पर बसा है सिंदौस गांव, जिसके पास ही बिठौली गांव बसा हुआ है. प्राकृतिक सुंदरता से लबरेज इस गांव में पांच नदियों यानि यमुना, चंबल, सिंधु, क्वारी और पहुज का दिव्य मिलन होता है. यमुना को इटावा की सबसे महत्वपूर्ण नदी के रूप में देखा जाता है जो 24 किलोमीटर की दूरी तक बहते हुए जनपद की दक्षिणी सीमा बनाती है, चंबल नदी जो एमपी के इंदौर जिले में स्थित जनापाऊ की पहाड़ियों के समीप से निकलती है, वह कचारी गांव के पास आकर यमुना में विलीन हो जाती है.
सिंधु नदी मालवा के विदिशा की पहाड़ियों से निकलते हुए यमुना नदी में मिलती है, तो वहीं क्वारी जो एक मौसमी नदी है, वह इटावा में 40 किमी का फासला तय करते हुए पचनद क्षेत्र में सिंधु नदी में समाहित हो जाती है. यमुना में चंबल नदी के मिलने के बाद पहुज भी यमुना में आकर मिलती है. इस तरह यह पांचों नदियां एक साथ मिलकर पचनद संगम का निर्माण करती हैं.
2. पौराणिक है पचनद संगम
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पचनद संगम पर प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर काफी बड़ा मेला लगता है, इसके किनारों पर 800 ईसा पूर्व बना महाकालेश्वर मंदिर, 500 वर्ष पूर्व निर्मित बाबा मुकुंदवन तपस्थली, पांडवों का अज्ञात क्षेत्र, ऐतिहासिक भारेश्वर मंदिर इत्यादि जैसे प्राचीन धार्मिक स्थल हैं, जिनकी शोभा देखते ही बनती है. कहा जाता है कि महाभारत काल में दानव बकासुर का वध पांडवों ने यहीं किया था. साथ ही लोक मान्यताओं की मानें तो तुलसीदास जी स्वयं यहां आये थे और उन्होंने बाबा मुकुंदवन से भेंट की थी, जिसके बाद से यहां कार्तिक पूर्णिमा पर लक्खी मेला लगना शुरू हो गया था.
3. दुर्गम चंबल घाटी और डाकुओं का प्रभाव रहे हैं विकास में बाधा
पचनद क्षेत्र के विकास में सबसे बड़ी बाधा यहां का भौगौलिक स्वरुप और चंबल के बीहड़ क्षेत्र में डाकुओं का अत्याधिक प्रभाव होना रहा है. जनपद इटावा के दक्षिणी-पूर्वी भाग में स्थित पचनद क्षेत्र में यमुना एवं चंबल नदियों द्वारा उत्खात स्थलाकृति/बीहड़ का विकास हुआ है जिसका क्षेत्र की आर्थिक एवं सामाजिक गतिविधियों पर प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है. इस क्षेत्र में बीहड़ क्षेत्र का अधिक विस्तार होने के कारण यहां सिंचाई सुविधाओं का अपेक्षाकृत कम विकास हुआ है तो वहीं जल संग्रहण की समुचित व्यवस्था नहीं होने के अभाव में यहां कभी-कभार बाढ़ भी आ जाती है.
पूरी तरह से कृषि पर आधारित इस क्षेत्र के लिए यह दुर्भाग्य रहा है कि पांच नदियों का संगम होने के बावजूद भी जल की अव्यवस्था के कारण और यहां के जटिल भूगोल के कारण बुंदेलखंड भयंकर सूखे की चपेट में रहता है.
4. दशकों से लंबित है बांध योजना
इंदिरा गाँधी की सरकार के दौरान पचनद बांध परियोजना सबसे पहले सुनने में आई थी, इस प्रोजेक्ट को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी का ड्रीम प्रोजेक्ट भी माना गया था और उन्होंने यमुना बेल्ट के गांव सड़रापुर में बांध बनाने की घोषणा की थी, लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से यह योजना सफल नहीं हो पाई.
इसके बाद वर्ष 2006 में भी समाजवादी पार्टी के सांसद रघुराज शाक्य द्वारा संसद में पचनद मुद्दे को उठाया गया औरजल निगम मऊरानीपुर डिवीज़न से कार्य का आरंभ भी हुआ लेकिन राज्य सरकारों की उपेक्षा से यह प्रोजेक्ट लंबित ही रहा.
वर्ष 2016 में तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने एक बार फिर इस प्रोजेक्ट के लिए प्रयास शुरू किये और हवाई सर्वेक्षण करते हुए प्रोजेक्ट निर्माण को हरी झंडी दी.
उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में केन्द्रीय सरकार होने से अब यह उम्मीद जताई जा रही है कि यह बांध प्रोजेक्ट जरुर पूरा होगा और 2018 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पचनद क्षेत्र को विकसित करने की बात रखी है.
5. क्या है पचनद बांध प्रोजेक्ट
पचनद संगम स्थल पर बांध परियोजना के अंतर्गत बांध के साथ साथ पॉवर स्टेशन की भी स्थापना की जाएगी, जिसके बाद बुंदेलखंड और उत्तर प्रदेश के अन्य मैदानी इलाकों में सिंचाई के लिए पांच नहरों के निर्माण की भी योजना प्रोजेक्ट का हिस्सा है. मुख्यतः इस प्रोजेक्ट से बुंदेलखंड के सात सूखा ग्रसित जिलों (बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, झांसी, ललितपुर और जालौन) के साथ साथ औरेया और इटावा को भी कृषि, सिंचाई, उद्योग, बिजली आदि से जुड़े लाभ मिलेंगे. इसके साथ साथ यहां धार्मिक महत्त्व के साथ साथ इको टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा और यहां के युवाओं के लिए रोजगार के अनगिनत अवसर पैदा होंगे.
6. पचनद परियोजना आंकड़ों की दृष्टि से
पचनद परियोजना से लगभग साढ़े चार हेक्टेयर के क्षेत्र को सिंचाई की सुविधा मिलेगी. वहीँ बैराज बनने के बाद निकलने वाले छोटी नहरों की उपलब्धता से सिंचाई क्षेत्र में 102 फीसदी तक बढ़ोतरी होने का अनुमान है, जो वर्तमान में बेहद कम है. सिंचाई बढ़ने से वार्षिक खाद्यान्न की पैदावार को विकास मिलेगा और देश का कृषि निर्यात भी बढ़ेगा. सिंचाई के साथ साथ लगभग 400 मिलिओं यूनिट बिजली भी प्रति वर्ष पैदा होगी, जिससे कृषि और उद्योग दोनों ही क्षेत्रों को प्रगति मिलेगी.