हाल ही में काली नदी में बढ़ते प्रदूषण के चलते इसे सीपीसीबी ने देश की तीसरी सबसे प्रदूषित और उत्तर प्रदेश की सबसे प्रदूषित नदी करार दिया है. इससे पूर्व भी काली नदी को लेकर किये गए विभिन्न शोधों में इसके जल में भारी मात्रा में विषाक्त तत्त्व मिले हैं, नौ जिलों में बहने वाली 498 किलोमीटर लम्बी यह नदी प्रतिदिन अपने साथ मेटल, लेड, अमोनिया, आयरन, सिल्वर, फ्लोराइड समेत कई विषैले केमिकल युक्त जल बहाती है और इसके साथ बहती हैं, कैंसर से लेकर त्वचा व ह्रदय रोग जैसी कईं गंभीर बीमारियां.
पर अब बीते कईं वर्षों से प्रदूषण की मार झेल रही काली नदी के जीर्णोद्धार के लिए मार्ग दिखने लगा है, इस नदी के प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए नीर फाउंडेशन की मांग पर भारत सरकार के राष्ट्रीय मिशन फॉर क्लीन गंगा की प्रोजेक्ट डायरेक्टर अशोक कुमार ने हाल ही में काली नदी के तकनीकी परिक्षण के लिए चार सदस्य टीम गठित करने का निर्णय लिया है.
उद्गम स्थल अंतवाडा से की जाएगी शुरुआत
एनएमजीसी के तकनीकी निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार, वैज्ञानिक विवेक राज, सिविल इंजीनियर विजय कुमार यादव और सीवेज शोधन एवं वेस्ट वाटर मैनेजमेंट विशेषज्ञ महेश कुमार की टीम सबसे पहले काली के उद्गम स्थल अंतवाडा ग्राम में पहुंचकर जांच शुरू करेगी. जिसके बाद ही टीम अन्य क्षेत्रों में जाकर प्रदुषण का स्तर नापेगी. यह न केवल नदी जल के नमूनों की जाँच करेगी बल्कि ग्रामीणों और तटीय इलाकों के पास रह रहे लोगों से बातचीत कर नदी के विषय में उनके अनुभव जानने का प्रयास भी करेगी, ताकि प्रदूषण के कारण हो रही परेशानियों को जमीनी स्तर पर समझा जा सके.
सभी प्रवाह क्षेत्रों में निरीक्षण करेगी टीम
नीर फाउंडेशन के निदेशक रमण त्यागी ने बताया है कि वह पिछले कुछ समय से हेस्को के सहयोग से काली नदी उद्गम स्थल को पुनर्जीवित करने का कार्य कर रहे हैं, जिसमें जिला प्रशासन और राष्ट्रीय मिशन फॉर क्लीन गंगा का भी सहयोग उन्हें मिल रहा है. संगठन के आग्रह करने पर भारत सरकार के द्वारा नदी के प्रदूषित प्रवाह क्षेत्रों जैसे मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मुजफ्फरनगर, कन्नौज आदि जिलों में नदी प्रदूषण का स्तर जांचने के लिए विश्लेषण कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी.
अर्थ डे नेटवर्क भी करेगा सहयोग
अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण संगठन अर्थ डे ने भी क्जाली नदी उद्गम स्थल के लिए किये जा रहे नीर फाउंडेशन के प्रयसों की सराहना की है और साथ ही इस अभियान से जुड़ने के लिए आग्रह किया है.
बता दें की अर्थ डे नेटवर्क की ओर से ग्रेट ग्लोबल क्लीनिंग कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसमें गंगा नदी और इसकी सभी सहायक नदियों को स्वच्छ एवं अविरल बनाये रखने की दिशा में कार्य कर रही संस्थाओं को सहयोग दिया जाता है.
इसी कर्म में नीर फाउंडेशन, जो काली नदी पुनर्जीवन के प्रयास में लंबे समय से जुटा है..को समर्थन देने के लिए भारत में अर्थ डे नेटवर्क के निदेशक अनिल अरोड़ा ने ईमेल कर नदी सुधार के लिए उनके प्रयासों में सहयोग देने की बात रखी.
काफी समय से प्रदूषण की चपेट में है काली नदी
काली नदी में प्रदूषण का प्रमुख कारण गैरकानूनी रूप से नदी में कारखानों के अपशिष्ट का प्रवाह करना है. नदी में प्रदूषण का आलम यह है कि इसके आस- पास स्थित के गांवों का ग्राउंडवाटर भी प्रदूषित हो चुका है, जिसके चलते हैंडपंपों से भी गंदा पानी आ रहा है. काली नदी के कायाकल्प के लिए कार्य करने वाली संस्था नीर फाउंडेशन ने अटाली गांव के ऐसे 50 घरों के हैंडपंप के पानी के सैंपल लेकर इसकी जांच की थी, जहाँ लोग विभिन्न रोगों से ग्रसित हैं.
नीर फाउंडेशन के निदेशक रमन त्यागी ने इस विषय पर कहा था कि,"इन 50 घरों में करीब 250 लोग रहते हैं, जिनमें से लगभग आधे लोग पिछले पांच वर्षों के अंतर्गत जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हैं. इन परिवारों के ज्यादातर लोग त्वचा, पेट संबंधी रोगों व कैंसर से जूझ रहे हैं तथा कई बच्चे मानसिक रोगों की चपेट में हैं. वहीं इन बीमारियों के चलते करीब 19 लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है."
वहीं देहरादून आधारित पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट द्वारा किए शोध के अंतर्गत काली नदी के जल के 16 अलग- अलग सैंपल्स की जांच की जा चुकी है, जिसके अंतर्गत 8 सैंपल्स ग्राउंडवाटर से लिए गए थे, जबकि अन्य आठ सैंपल्स विभिन्न जिलों में बहती इस नदी के जल से. नदी से करीब 2 किमी रेडियस पर स्थित गांवों से लिए गए इन जल सैंपल्स ने यह स्पष्ट कर दिया, कि सिर्फ काली नदी का जल ही नहीं बल्कि इसके आस- पास स्थित गांवों का ग्राउंडवाटर भी बुरी तरह से प्रदूषित हो चुका है.