प्रदूषित पर्यावरण दुनिया के लिए समस्या बनता जा रहा है। इससे निपटने के लिए सरकारें नई-नई पॉलिसी ला रही हैं। जिसमें पौधरोपण, सिंगल यूज्ड प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक के अलावा कूड़े का प्रबंधन शामिल है। लेकिन इन सबके बावजूद शहर की आबोहवा, पानी, मिट्टी की गुणवत्ता घटती ही जा रही है। ऐसे में हम अपने बच्चों के लिए शिक्षा, सुरक्षा, पोषण के अधिकार के लिए लड़ तो रहे हैं लेकिन जिस पर्यावरण में उन्हें कल पर्यावरण सांस लेनी है उसके लिए कुछ नहीं कर रहे। यूनिसेफ की ओर से बाल अधिकार अभियान के तहत पृथ्वी रक्षक मुहिम में पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. वेंकटेश दत्ता ने कई सुझाव दिए। उन्होंने लोगों से ज्यादा संख्या में माइक्रो फॉरेस्ट विकसित करने और संसाधनों के कम इस्तेमाल पर जोर दिया।
जहरीले हो रहे है अन्न, जल और प्राणवायु
बीबीएयू के पर्यावरण विभाग के डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया कि आज प्रदूषण के कारण हमारी तीनों मूलभूल जरूरतें मिलावट की जद में आ गई हैं। हवा में प्रदूषण से एक्यूआई की हालत गंभीर है। ऐसे में जब शरीर में जाने वाली ऑक्सिजन शुद्ध नहीं होगी तो हमारी उम्र घटेगी ही। वहीं, पानी इतना कंटामिनेटेड हो गया है कि बिना ट्रीटमेंट पीने लायक ही नहीं है। इसी तरह खाने की चीजों में पेस्टीसाइड का इस्तेमाल हमे रोगी बना रहा है। ऐसे में पर्यावरण की गुणवत्ता में कमी आने से बीमारियां बढ़ रही हैं। अब बड़ा सवाल यह है कि ऐसे में हम स्वस्थ कैसे रहें।
तापमान में वृद्धि से बढ़ रहीं वेक्टर बॉर्न डिजीज
डॉ. वेंकटेश ने बताया कि प्रकृति में हर चीज का संतुलन जरूरी है। सांस लेने और छोड़ने के दौरान जो भी कार्बन डाई ऑक्साइड हम छोड़ते हैं उसे पेड़-पौधे और समुद्र अवशोषित करती हैं। ये कार्बन सिंक का काम करते हैं। लेकिन वर्तमान में जिस तेजी से पेड़ों का कटाव हो रहा है इससे यह संतुलन बिगड़ता जा रहा है। कार्बन डाई ऑक्साइड की बढ़ी मात्रा और पानी आपस में मिलकर समुद्र की एसिडिटी बढ़ा रहे इससे समुद्र का पीएच बैलेंस प्रभावित हो रहा है, समुद्री जीव जंतु मर रहे हैं। वहीं, जंगलों के खत्म होने से बीते सौ वर्षों में धरती का तापमान 9 से 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। इस बढ़े तापमान से वेक्टर बॉर्न डिजीज बढ़ रही हैं।
पेड़ कम दूरी पर लगाएं
डॉ. वेंकटेश ने बताया कि पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार को अपनी बनाई पॉलिसी की मॉनिटरिंग करनी होगी। वहीं, लोगों को चाहिए कि घरों के आसपास पेड़पौधे लगाने के साथ माइक्रोफॉरेस्ट बनाने चाहिए। इसके लिए एक एरिया में 40 से 50 पेड़ कम दूरी पर लगाएं। अधिक से अधिक वृक्ष किसी भी क्षेत्र की वायु को तो स्वच्छ बनाये ही रखते हैं बल्कि भू जलस्तर को भी रिचार्ज रखने में सहायक बनेंगे।
संसाधनों का हो सीमित प्रयोग
व्यक्ति की इच्छाओं का कोई अंत नहीं है, अगर हम अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करें तो प्रकृति पर भी अनावश्यक दबाव नहीं पड़ेगा। जैसे हम अगर साल में दो चमड़े के जूते खरीदते हैं तो एक का इस्तेमाल करें। इससे चमड़े का प्रॉडक्शन कम होगा और इंवारनमेंट पर दवाब कम पड़ेगा। अगर मौसम अनुकूल लगे तो कार या घर में लगे एयर कंडीशनर का उपयोग भी बंद कर दे, जिससे वातावरणीय ताप कम उपन्न होगा।