तमाम विश्व आज प्लास्टिक की मार से कराह रहा है। अमेरिका जैसा विकसित देश हो या भारत जैसा विकासशील सभी प्लास्टिक के उपयोग से बढ़ने वाली दुश्वारियों से परिचित हो चुके हैं। विश्व का वातावरण बेहतर बनाए रखने के लिए कार्यरत सरकारी व गैरसरकारी संगठन इस चिंता में डूबे हैं कि अगर समय रहते समाधान नहीं किया गया तो भविष्य में नतीजे भयावह होने तय हैं। पिछले दो दशकों में बढ़े प्लास्टिक के बेतहाशा उपयोग के कारण उसके न गलने वाले कचरे ने गांवों से लेकर शहरों तक, धरातल से लेकर नदियों तक तथा समुद्रों से लेकर पहाड़ों तक पर अपनी मौजूदगी असरदार तरीके से दर्ज करा दी है। प्लास्टिक का जितना उपयोग बढ़ता जा रहा है उससे उतना ही कचरा पैदा हो रहा है जोकि धरती की जीवंतता को नष्ट करने पर तुला है।
भारत में दिल्ली जैसा बड़ा शहर हो या मेरठ जैसा छोटा शहर, सभी में घरों से निकलने वाले प्लास्टिक कचरे की समुचित निस्तारण व्यवस्था नहीं है। वन, पर्यावरण एवं मौसम परिवर्तन मंत्रालय द्वारा बनाए गए प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम-2018 अभी अपना कोई खास असर जमीन पर नहीं दिखा पाया है। अभी सरकार द्वारा कैरी बैग की मोटाई को 40 माइक्रॉन से बढ़ाकर 50 माइक्रॉन कर दिया गया है।
विश्व के समुद्रों व महासागरों में करीब 80 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा भूमि से जाता है, जिसमें 50 प्रतिशत एकल उपयोग वाला होता है। इसको गलने में 500 से 1000 वर्ष का समय लगता है। यही कारण है कि समुद्रों व महासागरों में प्रतिवर्ष करीब 10 लाख समुद्री पक्षी व एक लाख स्तनधारी प्लास्टिक प्रदूषण के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं।
स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयार्क द्वारा अमेरिका, भारत, इंडोनेशिया, मेक्सिको, लेबनान, कीनिया व थाइलैंड में बिकने वाली विभिन्न कंपनियों की 259 बोतलों पर किए गए अध्ययन में बोतल बंद पानी में 6.5-100 माइक्रॉन तक के 314 कण पाए गए जबकि 100 माइक्रॉन से बड़े प्रति लीटर दस कण पाए गए। ये कण लगातार बोतल बंद पानी पीने से हमारे शरीर के विभिन्न हिस्सों में जमा हो जाते हैं जिनसे कैंसर जैसी घातक बीमारी जन्म लेती है।
यूनाइटेड नेशन एनवायरमेंट कार्यक्रम के एक अध्ययन के अनुसार प्लास्टिक के अत्यंत छोटे कण माइक्रोबीड्स भी माइक्रो प्लास्टिक के ही अंश हैं। ये उपयोग के बाद जलस्रोतों तक पहुंच जाते हैं। ये विघटित नहीं होते हैं और जब एक बार पर्यावरण में प्रवेश कर जाते हैं तो अनियंत्रित हो जाते हैं जिन्हें निकालना असंभव है। अमेरिका में 2015 में माइक्रोबीड्स फ्री वाटर एक्ट बनाना पड़ा।
किसी भी समस्या से निपटने के लिए उसकी जड़ पर प्रहार करना उसके समाधान का सीधा रास्ता है। प्लास्टिक के खतरे से निपटने के लिए सरकारें जो करेंगी वे करें लेकिन इससे बचने के लिए हमें स्वयं में बदलाव लाना होगा। प्रत्येक व्यक्ति जब यह ठान लेगा कि मेरे दैनिक जीवन में प्लास्टिक का उपयोग कम से कम या कतई नहीं होगा तो हम स्थाई समाधान की ओर बढ़ सकते हैं। साथ ही लोगों को जागरूक करें और प्लास्टिक मुक्ति के लिए सक्रिय हों।