भारत की आधी से अधिक जनसंख्या का पालन पोषण एक मां के समान करती है गंगा. प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष..हर देशवासी कहीं न कहीं इसी गंगत्त्व से जुड़ा हुआ है. गोमुख ग्लेशियर से निकलने वाली गंगा को मात्र एक नदी कहकर दरकिनार नहीं किया जा सकता, अपितु यह तो सदियों से हमारी भारतीयता का आधार रही है. जिसके जल को सनातनी परम्परा में घरों में सहेज कर रखा जाता है, वर्तमान में उसी गंगा को सहेजने में हम कितना पीछे रह गए, इसका आकलन करना भी कठिन है. युगों से भारतवासियों को संरक्षित कर रही गंगा आज स्वयं संरक्षण की मांग कर रही है और उसकी यह पुकार यदि ऐसे ही नजरंदाज की गयी तो देश का भविष्य खतरे में होगा.
गंगा का संवर्धन मतलब समस्त गंगा बेसिन का संरक्षण
गंगा को बचाना है तो इसके समग्र स्वरुप को जानना होगा. नदी का अपना एक तंत्र होता है, भले ही गंगा का जन्म गोमुख से होता हो परंतु उसे अविरल प्रवाह देने में अनगिनत सहायक नदियों, भूगर्भीय जल भंडार, जलाशयों आदि का महत्त्व नकारा नहीं जा सकता है. पर्यावरणविद मानते हैं की गंगा को संरक्षित करने के लिए पूरे गंगा बेसिन को बचाना होगा, केवल गंगा संरक्षण पर हजारों करोड़ों रूपये लगा देने से हम गंगा को नहीं बचा पाएंगे.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आकलन के मुताबिक, मैदानी क्षेत्र में उतरने के बाद नदी के सभी हिस्सों में फीकल कॉलिफोर्म बैक्टिरिया का स्तर, जैविक व रासायनिक ऑक्सीजन की मांग और कैसिनोजेनिक रसायनों की शृंखला पेयजल और स्नान करने योग्य पानी की गुणवत्ता के मानक स्तर से काफी अधिक पाई गयी है और गंगा की सहायक नदियों का हाल भी कमोबेश यही है. ऐसे में गंगा बेसिन को बचाना पहली आवश्यकता होनी चाहिए.
समझना होगा गंगा का संपूर्ण इकोसिस्टम - प्रो. वेंकटेश दत्ता
देश में नदियों के संवर्धन के लिए विशेष रूप से कार्य कर रही डॉ बी आर अंबेडकर यूनिवर्सिटी से प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता (पर्यावरण विभाग) का मानना है कि आज जरुरत है कि हम जाने कि गंगा स्वच्छता अभियान में कहां समस्या है. हमें हजारों-करोड़ों रूपये इसके लिए लगाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि देश के लगभग 47 प्रतिशत हिस्से में विस्तृत गंगा घाटी के जलतंत्र को समझने की है. गंगा के इकोसिस्टम को समझना आज सबसे बड़ी चुनौती है और इसे प्रदूषण मुक्त बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. केवल सीवेज या कारखानों से निकल रहे प्रदूषण को फौरी तौर पर रोक देने से काम नहीं चलेगा. गंगा के जीवन को गति देने में अनगिनत सहायक नदियों, छोटी धाराओं और भूमिगत प्राकृतिक जलस्त्रोतों की सबसे अहम भूमिका है, फिर भी बड़ी बड़ी योजनाओं में इन्हें स्थान नहीं दिया जाता, जो आज सबसे बड़ी विडम्बना है.
गंगा के ई -फ्लो में आई है 25-40 फीसदी की कमी
गंगा को सबसे अधिक प्रवाह मिलता है अपने अदृश्य भूजल भण्डारो से, यानि लगभग 15 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी गंगा बेसिन को अपने प्राकृतिक भूजल स्त्रोतों से मिलता है. इसे हम सरल शब्दों में कुछ ऐसे समझ सकते हैं कि गंगा किसी वृक्ष की तरह अपने बेसिन में फैली हुयी है, जिसमें शाखाओं के समान सहायक जलधाराएं फैली हुयी हैं. इन जलधाराओं को पोषण अधिकतर भूजल से मिलता रहा है, मसलन उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से निकलने वाली गोमती नदी, जो गंगा की मुख्य सहायक मानी जाती है..वह भूजल संचित नदी है.
गोमती की ही तरह अन्य बहुत सी नदियां हैं, जो गंगा की सहायकों यमुना, सोन, गंडक, कोसी, महानंदा, रामगंगा, घाघरा आदि को सींच रही हैं. लेकिन ये छोटी धाराएं आज भूजल के तेजी से दोहन के कारण विलुप्त होने की कगार पर हैं और कईं तो समाप्त भी हो चुकी हैं. इस बेस फ्लो में कमी आने से गंगा व इसकी प्रमुख सहायकों के प्रवाह में भी 25-40 फीसदी की कमी आई है.
आवश्यकता है योजनाबद्ध रूप से गंगा बेसिन को बचाने की
नदी विशेषज्ञों के अध्ययन के अनुसार गंगा को बचाने के लिए गंगा घाटी का समग्र अध्ययन जरुरी है. इसके लिए अग्रलिखित कदम उठाने होंगे..
1. भूगर्भीय जल को बचाने के प्रयासों में तेजी लानी होगी. मानसून के बदलते पैटर्न को देखते हुए वर्षा के जल को अधिक से अधिक संगृहीत करने के तरीकों पर काम करना होगा. शहरी और ग्रामीण स्तर पर लोगों को जागरूक करना होगा. भूजल दोहन रोकने के लिए सख्त कानून भी बनाना होगा.
2. छोटी धाराओं को संरक्षित करने की व्यवस्था करनी होगी. अतिक्रमण, प्रदूषण और अति दोहन का शिकार हो रही इन छोटी जल धाराओं को संवर्धित करना आज आवश्यक है, इनके संरक्षण से गंगा की सहायक नदियों को प्रवाह मिलेगा.
3. सहायक नदियों को भी प्रदूषण मुक्त बनाने के उपाय सख्ती से अमल में लाने होंगे. इनका खोया हुआ स्वरुप लौटाना होगा.
4. गंगा नदी पर बनने वाले सिंचाई और विद्युत प्रोजेक्ट्स को भी पर्यावरणविदों एवं नदी विशेषज्ञों के व्यापक अध्ययन के बाद ही क्रियान्वित किया जाये.