बिहार के उप मुख्यमन्त्री श्री सुशील कुमार मोदी ने हाल ही में इंडियन वाटर वर्कर्स एसोसिएशन के 52वें वार्षिक सम्मेलन के समापन समारोह को सम्बोधित करते हुए बताया कि कभी पानी की प्रचुरता वाले राज्य बिहार में आज भूजल संकट गहराता जा रहा है. आज राज्य के 38 जिलों में से 37 जिलों के पानी में आर्सेनिक, आयरन और फ्लोराइड जैसे खतरनाक रसायन घुलकर लोगों को बीमार बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि आज राज्य के 1 लाख 14 हजार वार्ड में से 31 हजार में शुद्ध पेयजल मुहैया करवा पाना सरकार के लिए गंभीर चुनौती बन गया है. विगत दस वर्षों में से भी अधिक समय में भी पानी को इन खतरनाक रसायनों से मुक्त करने की ठोस तकनीक नहीं बन पाई है, जो निराशाजनक है.
हालांकि अगर बिहार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की वेबसाइट पर डाले गए आंकड़ों की बार करे तो यहां अभी भी वर्ष 2009 की ही भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट मौजूद है. इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 28 जिलों में प्रदूषित पानी की समस्या बताई गयी है, जिसमें 13 जिलों में आर्सेनिक, 11 में फ्लोराइड और 9 जिलों में आयरन की अधिकता भूजल में पाई गयी थी. यदि उपमुख्यमंत्री के भाषण के अनुसार तुलना की जाये तो यह जल प्रदुषण बढ़ते बढ़ते अन्य 9 जिलों को भी अपनी चपेट में ले चुका है, यानि देखा जाए तो प्रदूषण की गति धीमी होने के बजाय लगातार बढ़ी है, जिसे एक गंभीर जल संकट के रूप में देखे जाने की जरुरत है.
अगस्त 2019 में आई लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया था कि मुंगेर जिले में सतही जल के साथ साथ भूजल की गुणवत्ता भी लगातार गिर रही है. यहां बरियापुर उत्तरी, बरियापुर दक्षिणी, हरिणमार, झौवा बहियार, कुतलुपुर, जाफनगर, तारापुर दियारा आदि पंचायती क्षेत्रों में आर्सेनिक भूजल में घुल रहा है. वहीँ जिले के दस पंचायती क्षेत्रों जैसे खैरा, रमणकाबाद पूर्वी, रमणकाबाद पश्चिमी, मधवा, भलुआ कोल, हथिया, बड़ी दरियारपुर आदि क्षेत्रों में फ्लोराइड की मात्रा अधिक पाई गयी है. इनमें गंगा किनारे वाले क्षेत्रों में 11 पीपीबी से 92 पीपीबी तक आर्सेनिक की मात्रा पाई गयी है. लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की प्रयोगशाला के अंतर्गत हर माह विभिन्न पंचायती क्षेत्रों के पानी की जाँच करके मौसम के अनुसार जल की गुणवत्ता को परखा जाता है. जिसमें वर्ष 2019 के आंकड़े बताते हैं कि भूजल में पीएच मान, टीडीएस, कुल क्षारीयता, कठोरता आदि भी स्वीकार्य सीमा से काफी अधिक पाए गए हैं.
पानी में यदि स्वीकार्य सीमा से अधिक आर्सेनिक मिल जाये तो स्वास्थ्य पर इसके घटक परिणाम होते हैं. भारत में मुख्यतः पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, झारखंड आदि के जिलों में आर्सेनिक युक्त जल की समस्या अधिक पाई गयी है. आर्सेनिक युक्त जल के अधिक प्रयोग से त्वचा का रंग परिवर्तित होने लगता है और त्वचा कठोर, खुरदुरी होने लगती है. अगर लम्बे समय तक आर्सेनिक प्रदूषित जल का प्रयोग किया जाए तो इससे शरीर के आन्तरिक अंगों जैसे अमाशय, फेफड़े व गुर्दे का कैंसर भी हो सकता है. इसकी अधिकता से होने वाली बीमारियों को आर्सेनिकोसिस की संज्ञा दी जाती है और यदि प्रथम चरण में ही आर्सेनिक युक्त जल, भोजन का प्रयोग बंद कर दिया जाये तो इसके लक्षण भी धीरे धीरे समाप्त हो जाते हैं, पर यदि कैंसर हो जाये तो उसका ईलाज काफी मुश्किल है.
पेयजल में सीमा से अधिक फ्लोराइड का सेवन भी मनुष्य के स्वास्थ्य पर खतरनाक असर डालता है. भारत में 1930 के आस पास सबसे पहले आंध्र प्रदेश में फ्लोराइड युक्त पानी से होने वाली बीमारियां अस्तित्व में आई थी, लेकिन उसके बाद से अन्य भारतीय राज्यों में भी इसने तेजी से पांव पसारे हैं, जिनमें बिहार प्रमुख रहा है. फ्लोराइड युक्त जल के सेवन से व्यक्ति असमय वृद्ध होने लगता है. इससे होने वाली बीमारी को फ्लोरोसिस कहा जाता है. जिससे व्यक्ति शारीरिक विकलांगता का शिकार हो जाता है. यह बीमारी गर्भस्थ शिशु को यदि हो जाये तो उसे जन्मजात ही विकलांगता का शिकार होना पड़ता है. यह अधिकतर पेयजल से ही होती है, जिसमें फ्लोराइड हड्डियों से हाइड्रॉक्साइड को हटाकर खुद ही जमा होने लगता है और अस्थि फ्लोरोसिस को जन्म देता है. वर्तमान में दक्षिण बिहार में इसके रोगी बहुतायत देखने को मिल रहे हैं.
अपने संबोधन में उपमुख्यमंत्री ने जल प्रदूषण के अतिरिक्त "जल जीवन मिशन" के तहत तकरीबन 29 हजार करोड़ के खर्चे से इस वर्ष मार्च तक हर घर तक शुद्ध जल पहुँचाने की बात भी रखी. किन्तु यह वास्तव में बेहद कठिन मिशन माना जा सकता है, विशेषकर गर्मियों के समय में जब जल की विभीषिका अपने चरम पर होती है. ऐसे में यह वाकई चुनौतीपूर्ण है कि इतने व्यापक स्तर पर शुद्ध पेयजल हर घर तक पहुंच सके.
आज जहां नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि देश के लगभग हर राज्य में भूजल तेजी से गिर रहा है, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण विभाग की रिपोर्ट बताती हैं कि नदियों में प्रदूषण बेतहाशा बढ़ता जा रहा है और देश की तमाम छोटी बड़ी नदियां अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं. ऐसे समय में सरकार के हर घर शुद्ध पानी के दावे चौंकते हैं. बात केवल बिहार की नहीं बल्कि पूरे देश की है. चेन्नई, लातूर के जलसंकट का गवाह बना यह देश क्या वास्तव में एक बड़े स्तर पर जल की विभीषिका झेलने के लिए तैयार है? यह विचारणीय है.. आशा है कि वर्ष 2020 सभी को शुद्ध पेयजल मुहैया करवाए और उससे कहीं अधिक जल को संरक्षित करने की बौद्धिक क्षमता का विकास भी जनजीवन में हो सके.