लखीमपुर खीरी को छोटी काशी की उपाधि दी जाती है, जिसका सबसे बड़ा कारण यहां उपस्थित सरिताएं और उनके तटों पर सुशोभित मंदिर एवं आश्रम हैं. गोमती, उल्ल, कठिना, कंडवा, जमुई सहित अन्य बहुत सी छोटी-बड़ी नदियां जिले की जीवन रेखाएं हैं और लोगों की आजीविका का प्रमुख आधार भी हैं.
महाभारतकालीन भगवान लिलौटीनाथ का मंदिर अपने विशेष स्वरुप वाले शिवलिंग के लिए जाना जाता है, जो दिन में अनेकों बार अपना रंग बदलता है, मान्यताओं के अनुसार यह सुबह के समय काला, दोपहर में भूरा और रात के समय हल्का श्वेत शिवलिंग को विशेष बनाता है. यह मंदिर कंडवा और जमुई नदियों के संगम पर बसा है और अपनी पौराणिकता व हरियाली से सभी का मन अपनी ओर खींचता है. वस्तुतः नदियों के पवित्र संगम को ध्यान में रखते हुए ही इन मंदिरों की स्थापना की गयी होगी, यानि ये नदियां अपने आप में भारत के प्राचीन इतिहास, संस्कृति और धर्म की जीती-जागती झलकियां हैं, किंतु आज यह नदियां अपने ही जीवन के लिए संघर्ष कर रही हैं.
कंडवा नदी, जिसे लखीमपुर जिले की महत्वपूर्ण नदी माना जाता है, गोमती के ही समान भूजल से सिंचित होने वाली यह नदी लखीमपुर खीरी के संभार खेड़ा मिल के आसपास फैले इंदिरा मनोरंजन पार्क के घने जंगलों के मध्य से होकर गुजरती है और यह बड़े स्तर पर वन्य जीवन एवं जलीय जीवन का आधार है. इसके साथ ही यह बहुत से ग्रामों जैसे बालूडीह, ओदरहना, महेवा, मंझरा आदि के लिए भी महत्व रखती है.
वर्तमान में गोमती, शारदा, घाघरा, सरयू आदि के समान ही कंडवा नदी भी न केवल प्रदूषण की मार झेल रही है बल्कि अतिक्रमण के कारण भी नदी के प्रवाह पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. लोगों की अनभिज्ञता और शासन-प्रशासन के लापरवाह रवैये के चलते कंडवा और उसकी सहायक जुनई लगातार प्रदूषित होती जा रही हैं.
कंडवा में प्रदूषण इस कदर बढ़ चुका है कि औद्योगिक मीलों का विषैला रासायनिक अपशिष्ट रोजाना हजारों लीटर की तादाद में नदी में बहाया जा रहा है, जिसके चलते नदी में कईं स्थानों पर जलीय जीवन समाप्त हो चुका है और इसके आस पास के पर्यावरण पर भी इसके गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं. कुछ वर्ष पहले आई इस खबर के अनुसार कंडवा का पानी इस कदर जहरीला हो चुका है कि राजकीय कृषि क्षेत्र मंझरा में नदी का पानी पीने से डेयरी अनुभाग की दर्जनों भैंसों की मृत्यु हो गयी थी.
नदी में रोजाना घुल रहे जहर से इसके जलीय जीवन तो खतरे में है ही अपितु इसके किनारे रहने वाले दर्जनों ग्रामों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं. नदी में लगातार गिर रहे कूड़े के कारण यह नदी किसी नाले के समान दिखने लगी है और ग्रामीणों का भी कहना है कि गंदा पानी पीने से उनके जानवर बीमार हो रहे हैं.
हालांकि आज नदियों व पर्यावरण को लेकर समाज में जागरूकता आ रही है, अंतवाडा में काली नदी के उद्गम को दिया पुनर्जीवन इसका हालिया उदहारण है. लेकिन कंडवा, उल्ल, जमुई जैसी नदियों को आज भी एक बड़े अभियान की जरुरत है, एक कर्मठ नेतृत्व की आस है ताकि इन नदियों को भी संरक्षित किया जा सके और युगों प्राचीन नद्य संस्कृति की रक्षा हो सके.