1. दुर्गा, दुष्टसंहारिणी, की कल्पना मात्र शरीरस्थ समस्त कोशिकाओं को झंकृत करते, जमा साल-भर का दुर्गंध-युक्त मल को निकालते, उन्हें सीधा करते उनके कम्पन्न का उनमूलन करती है.
2. यह आराधना, तकनीकी-व्यवस्था, शरीर से निस्तरित, विनष्ट होती शक्ति-तरंगों को नियंत्रित कर, शक्ति-संग्रह करने वाली भारत का महान पर्व दुर्गा-पूजा है.
3. आश्विन-माह, पितरो-वाह्य अदृश्य शक्ति-तरंगो को तृप्ति, संतुलित करती देवीपूजा, आत्मस्थ होने का, शक्ति-संकल का, महान पवित्र माह है.
4. इस पूजा की कल्पना झंकृत रहते कोशिकाओं को समेटने की प्रक्रिया, शक्ति-संग्र , आश्विन माह की शुरुआत से आरंभ कर देता है.
5. 10 दिन लगातार की गयी लगनावेष्ठित पूजा से निरंतरता की कम्पनाशील कोशिकाएं संतुलनावस्था में आने की प्रवृत्ति में प्रविष्ट करती है. यही शक्ति-संकलन-तकनीक धर्म-मार्ग है, इस स्थिरता के निर्वहन के लिये मूर्ति का विसर्जन गंगा में नदी में आवश्यक है. यही है शक्ति-ग्रहण-संरक्षण सिद्धांत. अतः यदि मूर्ति-विसर्जन गंगा नदी में नही तो कोशिका से पूर्ण-धर्मार्थ-शक्ति का अर्जन नहीं.
6. 10 दिन के शक्ति-संकलन कार्य के समापन के लिये शक्ति-श्रोत में शक्तियावेष्ठित मूर्ति के विसर्जन का होना, एनर्जी टू एनर्जी के रिजोनेन्स का होना ही सही विसर्जन है.
7. करोड़ों लोगों की आत्म-संतुष्टि का एक साथ होना ही न्याय-मार्ग, धर्म-मार्ग, ज्ञान विज्ञान मार्ग एवं शांति मार्ग है और जीवन उद्देश्य मार्ग है. यही है मां दुर्गा / धर्म-प्रतिमाओं को नदी में विसर्जित होना.
8. दुर्गा/मूर्ति, में जलगुण विनष्ट करनेवाले हानिकारक अवशिष्ट क्या और कितना और नदी में जल प्रवाह/नदी-गुण के अनुपात को बिना आकलन कर, धर्म-कार्य की वैज्ञानिकता को नहीं समझना ही गंगा में मूर्ति के प्रवाह का नहीं होना है.
9. नदी की मुख्यधारा में मूर्ति-प्रवाह नहीं तो कहाँ? नदी किनारे गड्डा-खोदकर? तब मूर्ति के अवशिष्ट कहाँ जायेंगे? इनका फैलाव कैसे होगा? किनारे-किनारे इनका फैलाव? कितनी हानियाँ? कोई मूल्यांकन? तब किस आधार पर मूर्ति-प्रवाह गंगा में नहीं?
10. कितनी मूर्तियां? उनमें कितनी इन-आर्गेनिक रसायनें? उनकी कितनी क्षमता? इनकी तुलना में गंगा मे प्रवाहित हो रहे कितने नालें, उनमें कितने हानिकारक रसायनें? तब, मूर्ति-विसर्जन गंगा में क्यों नहीं?
11. बिना हानिकारक रासायनिकों का उपयोग कर मूर्तियां बनायी जा सकती हैं. तब मूर्तियों से गंगा को परहेज रखने के औचित्य का क्या अर्थ, ज्ञान से परे की बात लग रही है.
12. गंगा के विभिन्न-शक्तियों, स्थैतिक, गतिज, रासायनिक, बालू-शक्ति केन्द्रों, भू-जल केन्द्रों आदि को अनदेखा करते हुए मूर्ति-विसर्जन को प्रतिबंधित करना नदी विज्ञान व्यवस्था के विपरित है.
निदेशक - MMITGM
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