दुर्गा पूजा महोत्सव के दौरान देवी दुर्गा की मूर्ति को
विसर्जित करने के लिए काली नदी का प्रयोग किया
जाता रहा है, हालांकि, अब नदी का रंग वास्तव में
काला हो गया है. रासायनिक संयंत्रों, चीनी मिलों, भट्टियों एवं बूचड़खानों
आदि का असंशोधित प्रदूषित जल इस नदी को लगभग मृत कर चुका हैं. पानी में ना के
बराबर ऑक्सीजन बची है तथा वह पूर्णता काला हो गया है. अन्य सभी नदियों की तरह, काली नदी को भी पवित्र और
सुरुचिपूर्ण माना गया है. इस नदी को “काली” नाम मिला है क्योंकि ऐसा माना जाता रहा
है कि इसका जल काली खांसी का इलाज करने के लिए प्रयोग में लाया जाता था. पिछले दो
दशकों से, नदी को डंपिंग ग्राउंड के
रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमें काफी मात्रा में दूषित पदार्थों और संशोधित
ना किए गए प्रदूषित कारक हैं, जिनकी उत्त्पत्ति विभिन्न स्रोतों से है. इसके प्रमुख स्त्रोतों
में औद्योगिक असंसाधित तत्त्व, घरेलू सीवेज, कृषि अपवाह, पॉलिथिन आदि का अंधाधुंध उपयोग हैं.
काली नदी (पूर्व) के प्रदूषण का सर्वप्रमुख कारण औद्योगिक कचरा
है. चीनी प्रसंस्करण इकाइयाँ और उनसे संबंधित अल्कोहल निर्माण डिस्टिलरीज, पेपर मिल्स, डेयरी, टैनरीज़ सहित प्रमुख
उद्योग नदी के नजदीक स्थित हैं. चीनी मिलों और पेपर मिलों को 17 सबसे जहरीले अपशिष्ट
मुक्त करने वाले उद्योगों में शामिल किया गया है. इन उद्योगों से न केवल विनिर्माण
प्रक्रियाओं के दौरान सतही जल निकायों की बड़ी मात्रा प्रदूषित होती है बल्कि ये
उद्योग अपगामी अपशिष्टों द्वारा नदी पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हुए उसे संदूषित
करते हैं.
दूसरा, काली नदी हजारों प्रधान और लघु आवासों से असंशोधित मानव
उत्सर्जन की बड़ी मात्रा प्राप्त करती है. दूसरे शब्दों में, यह प्रमुख शहरों और शहरी
कस्बों के ट्रंक सीवर के रूप में कार्य करती है. इसमें सोडा, डीडीटी, बीएचसी, पेट्रोलियम उत्पाद
इत्यादि जैसे घरेलू अपशिष्ट भी शामिल हैं जो इंगित करता है कि इसमें भारी धातु
मानकों की विस्तृत श्रृंखला शामिल है.
तीसरा, पश्चिमी यू.पी. एक तेजी से उभरता कृषि क्षेत्र है, जहां रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, कृंतकों आदि का एक बहुतायत
उपयोग किया जाना कोई बड़ी बात नहीं है. यें रसायन व भारी धातु भू - क्षरण की प्रक्रिया के
माध्यम से नदी में प्रवाहित होते हैं एवं मृदा के जरिये प्रमुख जल संसाधन में अंतर्निहित जलवाही
स्तर को प्रदूषित करते हैं.
सीवेज प्रवाह के अलावा, घरेलू अपशिष्ट और मृत
जानवर भी नदी के पानी में डाल दिए जाते हैं. कुछ संक्रामक बीमारियों से पीड़ित
लोगों के मृत शरीर भी नदी में डंप किए जाते हैं, जो प्रदूषण को और अधिक बढ़ावा देकर
महामारी का कारण बन सकता है. प्रदूषित नदी अपने साथ विभिन्न जलजनित वायरस और
बैक्टीरिया लाती है और यह स्थिति लोगों के बिगड़ते स्वास्थ्य के लिए मुख्य रूप से
जिम्मेदार होती है.
एक महत्वपूर्ण जल संसाधन के इस कुप्रबंधन के कारण, इसके भौतिक-रासायनिक गुण इस
हद तक विकृत हो चुके हैं कि इससे भूजल भी प्रभावित हुआ है. काली नदी के जल का मलिन
स्वाद और गंध प्रमाण है कि यह जल अब पीने योग्य नहीं रहा है, फिर भी नदी के कैचमेंट क्षेत्र में हाशिये पर
धकेल दी गयी जनसंख्या यही दूषित जल सेवन करने पर विवश है. यहां के स्थानीय
निवासियों के पास इस दूषित जल को ग्रहण करने या उपेक्षा से मर जाने के अलावा और
कोई विकल्प शेष नहीं है.
मौजूदा स्थिति यह सवाल उठाती है कि क्या भारत सरकार, भारतीय
नागरिकों को सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने का प्रबंधन कर सकती है,
जो उनके मूल मानवाधिकारों
में से एक है? ऐसा नहीं है कि प्रदूषण से
मानव स्वास्थ्य और नदी जल की रक्षा के लिए कोई कानून नहीं है. प्रदूषण के पहलुओं
को कम करने और पर्यावरण में सुधार करने के लिए भारत सरकार ने जल अधिनियम (प्रदूषण
की रोकथाम और नियंत्रण) को पारित किया था और जल प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण के
लिए केंद्रीय बोर्ड का गठन किया था. उपर्युक्त अधिनियम जल संसाधन मंत्रालय के तहत
केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के माध्यम से प्रदूषण भार के लिए औद्योगिक
प्रदूषण की निगरानी के विनियमन और प्रावधानों के तरीकों को प्रस्तुत करता है.