गंदगी का दंश झेलती नदियों के लिए बेहतर प्रयास होना आवश्यक है. इसके चलते नीर फॉउंडेशन द्वारा जिस बिल की पिछले कई वर्षों से मांग की जा रही थी. उत्तर प्रदेश सरकार ने उस बिल को लेकर विचार किया. इसके बाद बेहतर और दमदार कदम उठाते हुए उत्तर प्रदेश ग्राउंड वाटर मैनेजमेंट एंड रेगुलेशन बिल 2019 (उत्तर प्रदेश भूजल प्रबंधन एवं विनियमन विधेयक 2019) को राज्य सभा में पास कर दिया. उम्मीद है जल्द ये कानून का रूप ले लेगा. भूजल का अधिक इस्तेमाल करने वाली इकाई या ड्रिलिंग एजेंसी कानून का उल्लंघन किया गया तो जुर्माना लगाया जायेगा. यह जुर्माना दो लाख रुपये से कम नहीं होगा और पांच लाख रुपये तक हो सकता है या जेल की सज़ा जो छह महीने से कम नहीं होगी.
इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य भूजल का संरक्षण, नियंत्रण एवं विनियमन है. जिसमें संबंधित पहलुओं का अध्ययन करने के बाद तय किया कि जनहित में भूजल के इस्तेमाल का पहला अधिकार पेयजल, घरेलू इस्तेमाल और मवेशियों के लिए होगा. इसके अलावा विभिन्न स्तरों पर भूजल प्रबंधन समितियों के गठन का प्रावधान है. साथ ही प्राधिकरण सुनिश्चित करेगा कि कोई व्यावसायिक, औद्योगिक इकाई भूजल को प्रदूषित ना करे और आवश्यकतानुसार ट्रीटमेंट प्लांट लगाना अनिवार्य किया जाये. विधेयक में वर्षा जल संचयन, रूफटॉप वाटर हार्वेस्टिंग, भूजल स्तर बढ़ाना, वाटर रिसाइलकिंग, जल भराव की रोकथाम का प्रावधान रखा जाएगा. वहीं प्रावधान में समान्य लोगों और कृषि उपभोक्ताओं के लिए किसी भी प्रकार के दंड का प्रवधान नहीं है.
कई नदियों को इस गर्त से निकालने के प्रयास जारी हैं लेकिन दूसरी ओर जिन नदियों में जल है उनका सही संरक्षण भी जरूरी है. सभी बड़े एवं मझौले उद्योग दावा करते हैं कि उन्होंने तरल अपशिष्ट शोधन संयंत्र लगा रखे हैं. वे सामान्यत: जैव रसायन ऑक्सीजन मांग (बीओडी) के निर्धारित मानकों का पालन करते हैं लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है इसका अंदाजा तो नदियों की स्थिति को देखकर लगाया जा सकता है. भूमिगत जल का भी आवश्यकता से अधिक दोहन किया जा रहा है जिससे लोगों को भविष्य में और भी कठिन हालातों का सामना करना पड़ेगा.